सारण लोकसभा सीट पर इस बार फिर से राजीव प्रताप रूडी और लालू यादव के बीच सीधी लड़ाई नजर आ रही है। रूडी लगातार तीसरी बार बीजेपी का कमल खिलाने की कोशिश कर रहे हैं तो लालू अपनी बेटी रोहिणी आचार्य के हाथ की लालेटन जलाकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी की हार का बदला लेना चाहते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार रूडी मतदाताओं को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने किसी तरह से अपने क्षेत्र को महानगरों के पैटर्न पर विकसित करने की कोशिश की है। गैस पाइपलाइन से लेकर इंटनेट सुविधाओं और बेहतर बिजली आपूर्ति तक के काम गिना रहे हैं।
रूडी पर लगते हैं क्षेत्र से गायब रहने के आरोप
वह खुद को एसी की तरह ‘फाइव-स्टार रेटिंग’ वाला दुनिया का ऐसा एकमात्र सांसद बताते हैं जो हवाई जहाज भी उड़ा सकता है। लेकिन, उनके आलोचकों की शिकायत है कि वे ऐसे ‘फाइव-स्टार नेता’ हैं, जो जमीनी सच्चाई से दूर हैं।
लालू यादव भी बन रहे हैं रूडी के लिए चुनौती
रूडी की मुश्किल इस बार सिर्फ ऐसे ही आलोचक नहीं हैं। राजद सुप्रीमो लालू यदव भी हैं, जो बेटी के इलेक्शन मैनेज करने के लिए छपरा में ही पार्टी दफ्तर में डेरा डालकर बैठे हैं। स्वास्थ्य की वजह से वह क्षेत्र में ज्यादा तो नहीं घूम पा रहे हैं, लेकिन वहां उनका होना ही, भाजपा प्रत्याशी की चुनौती बढ़ा रही है।
मसलन, ईटी से राजद दफ्तर में मौजूद देवेंद्र यादव नाम के पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, ‘वह (लालू) कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेते हैं, चुनाव प्रबंधन को लेकर सुझाव देते हैं और उस क्षेत्र में जाते भी हैं, जहां आरजेडी के लिए समस्या दिख रही है। अच्छी बात ये है कि वह इस क्षेत्र में पार्टी के पुराने लोगों को जानते हैं।’
सारण लोकसभा सीट का इतिहास
2008 में परिसीमन से पहले यह छपरा लोकसभा क्षेत्र था। 1977 में लालू यादव यहां से चुनाव जीते थे। सारण के ही सोनपुर विधानसभा से वे पहली बार 1980 में विधायक भी चुने गए थे। 2009 में उन्होंने सारण में भाजपा के दिग्गज रूडी को हराया था।
लेकिन, 2014 में उन्होंने (41.12%) राबड़ी देवी (36.38%) को हराने के बाद इस सीट पर कब्जा कर लिया और 2019 में 52.99% वोट लेकर जीत दर्ज की। तब राजद के चंद्रिका राय को 38.32% वोट आए थे।
सारण में मुस्लिम-यादव वोटों से आगे सोच रही है राजद
इस बार आरजेडी मुस्लिम-यादव वोट के अलावा कुशवाहा और निषाद वोटरों समेत कुछ और ओबीसी मतदाताओं से भी उम्मीद लगाए बैठी है। इसके लिए पार्टी ने यहां आलोक मेहता, अभय कुशवाहा, रितु जायसवाल और सीमा कुशवाहा जैसे नेताओं को उतार रखा है।
आरजेडी नेता रणधीर सिंह का इन नेताओं के बारे में कहना है, ‘वे खासकर गैर-यादव ओबीसी बहुल इलाकों में घूम रहे हैं। हमारा अनुमान है कि तेजस्वी की लोकप्रियता युवाओं में रोजगार और विकास एजेंडे की वजह से बढ़ रही है।’ उनको लगता है कि रविदास समाज के भी कुछ मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है।
मोदी फैक्टर के भरोसे रूडी!
हालांकि, दो चुनावों में लगातार अपनी जीत मजबूत करके बीजेपी साबित कर चुकी है कि उसकी पकड़ काफी मजबूत है। पार्टी गैर-यादव मतदाताओं में ‘मोदी मैजिक’ के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त है।
लालू यादव पटना छोड़ छपरा में आ डटे
राबड़ी को पटखनी देने वाले भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने उनको भी धोबिया-पछाड़ देकर इस सीट पर लगातार दूसरी बार कब्जा जमा लिया। लालू को उसकी कसक आज भी है। यही कारण है कि वे पटना छोड़कर छपरा में आ डटे हैं। रोहिणी की दी किडनी से उनका जीवन चल रहा और समर्थक जीत की दुआएं देते नहीं अघा रहे।
सारण में इस बार हिसाब किताब लगाना थोड़ा मुश्किल
सारण में इस बार हिसाब-किताब लगाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। दुआएं तो रूडी को भी खूब मिल रहीं और चाहने-मानने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भी कम नहीं। सोमवार की मोदी की जनसभा में जितने नारे लगे, अगर उतने वोट भी मिल जाएं तो रूडी अपनी हैट-ट्रिक के लिए आश्वस्त हो सकते हैं।
रोहिणी को अपने पहले दांव में ही उन्हें रोकने की कठिन चुनौती है, क्योंकि बिरादरी की ठसक से वोट बिदकने लगे हैं। लालू को राजनीति में स्थापित करने वाले सारण की पहचान मधुर-मीठी भोजपुरी और खनक-खुनक अंदाज वाले लौंडा नाच से भी जुड़ी है।
पलायन और रोजगार बड़ा मुद्दा
गड़खा के मुकुल उसे पेट की पीर बता रहे, जो मरद मानुष भी जनाना भेस धरकर कमर लचकाता है! भोजपुरी में संवाद सहज है, लेकिन रोजगार नहीं। पलायन का बड़ा कारण बेरोजगारी है। प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ फसलों को बर्बाद कर जाती है और उसके बाद परदेस का आसरा होता है।
मढ़ौरा में बंद हुई चार मिलें (चीनी, शराब, लोहा, मार्टन टाफी) अब नहीं खुलने वाली। किसी ने पहल ही नहीं की। इतनी शिकायत के बाद अमनौर में जगदीशपुर के जंग बहादुर महतो चुप-सी लगा जाते हैं। छपरा में दुकानदार राजेश श्रीवास्तव का कहना है कि रूडी को मजबूरी में वोट देना है, क्योंकि देश के लिए मोदी जरूरी हैं। जंगल राज को हम देख-भुगत चुके हैं। डबल इंजन की सरकार में सुशासन भी संभव है और विकास भी।