कभी गरजती थी जहां बंदूके आज वहां लहलहाती हैं फसले
सारण पानापुर !
गंडक नदी के पूर्वी जिलों चंपारण , मुजफ्फरपुर , वैशाली तथा पश्चिम क्षेत्र के गोपालगंज एवं सारण जिले के बीच सैकड़ों एकड़ में फैला यह दियारा क्षेत्र आज लहलहाते फसलों से गुलजार हो गया है।
यह दियरा क्षेत्र कभी नक्सलियों एवं डकैतों के रैनबसेरा के रूप में चर्चित था आज हरितक्रांति की नई इबादत लिख रहा है।
आवागमन एवं सिंचाई के संकुचित संसाधनों के बावजूद भी प्रखंड के सैकड़ों परिवार आज रबी एवं तरबूज के अलावे अन्य फसलों समेत सब्जियों की खेती में जुटे हैं।
बताया जाता हैं कि 90 के दशक के पहले सारण एवं मुजफ्फरपुर जिले के सैकड़ों किसान गेंहू , धान , मक्के आदि फसलों की खेती करते थे इसी खेती पर तटीय क्षेत्र के सैकड़ों किसानों के परिवारों की रोजी रोटी निर्भर थी 90 के दशक में डकैतों के बढ़ते आतंक के कारण किसानों ने धीरे धीरे खेती करना छोड़ दिया जिससे पूरा दियारा क्षेत्र जंगल मे तब्दील हो गया।
नक्सलियों ने 2010 में दियरा में पांव पसारना शुरू कर दिया जिससे लोग दियारा जाना ही छोड़ दिया पुलिसिया दबिश के कारण वर्ष 2017 के बाद नक्सली गति तीविधियों में कमी आई जिसके बाद किसानों ने एकबार फिर दियारे का रुख किया।
सीमित संसाधनों के बीच खेती में जुटे किसानों की कुछ परेशानियां भी है वही सरकार से उपेक्षा भी है रामपुररुद्र गांव के किसान इंदल सहनी, रणजीत साह ,योगेंद्र सहनी, भोरहा गांव निवासी अनिल ठाकुर आदि ने बताया कि दियारा क्षेत्र में विद्युत सेवा नही रहने से सिंचाई में परेशानी होती है।
उन्होंने बताया की लागत भी अधिक आता है आवागमन के साधन नही होने से भी काफी परेशानी होती है अगर गंडक नदी पर पीपा पुल का निर्माण हो जाए तो दियारा क्षेत्र कृषि का हब बन जायेगा।