
* माता का आगमन और गमन दोनों हाथी पर है जो बहुत ही शुभ माना जाता है
तरैया, सारण।
इस वर्ष शारदीय नवरात्र 26 सितंबर से प्रारंभ पांच अक्टूबर तक चलेगा। आचार्य सुकेश त्रिवेदी ने बताया कि शारदीय नवरात्र में पूजा अर्चना काफी फलदाई होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित कर मां दुर्गा की आराधना करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त:-
आचार्य सुकेश त्रिवेदी के अनुसार उदय कालीन प्रतिपदा तिथि 26 सितंबर सोमवार को है। इस बार दिनभर कलश स्थापना शुभ, शुद्ध और मंगलकारक है।नवरात्रि के पहले दिन शुक्ल व ब्रह्म योग का अद्भभुत संयोग बनने के कारण इसे बेहद खास माना जा रहा है। इस साल नवरात्रि पर माता रानी हाथी की सवारी से पृथ्वी पर आगमन और प्रस्थान करेंगी। मां की सवारी को बेहद शुभ माना जा रहा है। हाथी को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि जब देवी दुर्गा का आगमन और गमन हाथी पर होता है तो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
नवरात्र शक्ति महापर्व पूरे भारतवर्ष में बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में शक्ति का महत्व स्वयं सिद्ध है और उसकी उपासना के रूप अलग-अलग हैं। समस्त शक्तियों का केन्द्र एकमात्र परमात्मा है परन्तु वह भी अपनी शक्ति के बिना अधूरा है। सम्पूर्ण भारतीय वैदिक ग्रंथों की उपासना व तंत्र का महत्व शक्ति उपासना के बिना अधूरा है।
विशेष कामना के लिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- 04:36 एएम से 05:23 एएम।
अभिजित मुहूर्त- 11:48 एएम से 12:36 पी एम।
विजय मुहूर्त- 02:13 पीएम से 03:01 पीएम
प्रातः अमृत / शुभ चौघड़िया
06:17:42 से 07:48:03
09:18:24 से 10:48:49
दोपहर लाभ चौघड़िया
03:19:48 से 04:50:10
सायं – अमृत चौघड़िया
04:50:10 से 06:20:30
बिल्वाभिमंत्रण(बेलनवतन)-
एक अक्टूबर षष्ठी शनिवार, आँख खुलना- सप्तमी दो अक्तूबर रविवार, अष्टमी की महानिशा पूजन- दो अक्तूबर रात्री में, महा अष्टमी व्रत पूजा- तीन अक्तूबर सोमवार और महानवमी- चार अक्तूबर मंगलवार को है। नवरात्र का पारण और विजयादशमी पांच अक्तूबर बुधवार को होगा।
नवग्रह की समस्या से मिलती है मुक्ति:-
आचार्य सुकेश त्रिवेदी के अनुसार यदि व्यक्ति नौ देवियों की नौ दिन तक साधना करता है तो उससे उस साधक के नौ ग्रह शांत होते हैं। ये सब मां शक्ति की कृपा स्वरूप होता है। यही नहीं काल सर्प दोष, कुमारी, दोष, मंगल दोष आदि में मां की कृपा से मुक्त हुआ जा सकता है। भारतीय ऋषियों के वैदिक ज्ञान के विश्लेषण और विश्व के व्यवहारिक पहलू का विश्लेषण से ऐसा कहना तर्क संगत है कि शक्ति (नारी) की पूजा बिना हम और हमारे कर्मकांड अधूरे हैं।
दिन के अनुसार माता को भोग :-
रविवार – खीर, सोमवार-दुध, मंगलवार-केला , बुधवार- मखन, गुरूवार-शकर, शुक्रवार- मिश्री, शनिवार- गोघृत तिथी के अनुसार माता को भोग:-
प्रतिपदा तिथि को माता को घी का भोग लगाएं,
द्वितीया को शक्कर से,
तृतीया को गाय के दूध से,
चतुर्थी को माल पूआ से,
पंचमी को केला से,
षष्ठी तिथि को शहद से, सप्तमी तिथि को गुड़ से, अष्टमी को नारियल से,
नवमी को लावा से,
दशमी को तिल से भोग लगावें।