
सारण डेस्क:- सारण जिले के तरैया प्रखंड अंतर्गत तरैया बाजार स्थित प्रसिद्ध ख़दरा नदी आज अस्तित्व संकट से जूझ रही है। कभी जीवनदायिनी कही जाने वाली यह नदी बीते चार वर्षों से सूखी पड़ी है, जिससे इस क्षेत्र के हजारों किसान और मछुआरे परिवार गंभीर रूप से प्रभावित हैं। जल की अनुपलब्धता न केवल खेती-किसानी को चौपट कर रही है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर डाल रही है।
किसानों के सामने सिंचाई का संकट
तरैया और आसपास के गांवों के किसान वर्षों से ख़दरा नदी के जल पर निर्भर रहते आए हैं। यह नदी उनके खेतों की सिंचाई का मुख्य स्रोत थी। लेकिन विगत चार वर्षों से नदी में जल प्रवाह पूरी तरह से बंद है। स्थिति यह है कि न तो बरसात के मौसम में जल आता है और न ही किसी प्रशासनिक योजना के तहत इसमें कृत्रिम रूप से पानी छोड़ा जा रहा है।


इस जल संकट के कारण किसान खरीफ और रबी फसलों की बुवाई और सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। परिणामस्वरूप फसलें सूख जाती हैं, लागत नहीं निकलती और किसानों को कर्ज के दलदल में धंसना पड़ता है। किसान यह सवाल उठा रहे हैं कि जब मात्र 300 मीटर की दूरी पर एक नहर बहती है जिसमें सालभर पानी रहता है, तो उस नहर से ख़दरा नदी में पानी छोड़ने की कोई पहल क्यों नहीं हो रही?
नदी पर अवैध कब्जा और अतिक्रमण की बढ़ती समस्या
नदी में लंबे समय से पानी नहीं होने का दुष्परिणाम यह भी हुआ है कि इसके किनारे बसे कुछ लोगों ने अब इस पर अवैध कब्जा करना शुरू कर दिया है। कई लोगों ने नदी की जमीन पर पक्का निर्माण तक कर लिया है। जलहीन नदी अब धीरे-धीरे अतिक्रमण की शिकार हो रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है और जनप्रतिनिधि भी चुप्पी साधे हुए हैं।
मछुआरा समुदाय पर भारी पड़ी नदी की सूखापन
ख़दरा नदी केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि यहां के मछुआरा समुदाय के लिए भी जीवन रेखा थी। बड़ी संख्या में मछुआरे इस नदी में मछली पकड़कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन नदी में पानी न होने के कारण मछलियों का नामोनिशान मिट चुका है। इससे मछुआरे परिवारों की आजीविका पर संकट आ गया है। हालात यह हैं कि मजबूर होकर कई मछुआरा परिवार अन्य जिलों और राज्यों की ओर पलायन कर चुके हैं।

प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता
स्थानीय लोगों का आरोप है कि न तो प्रशासन ने अब तक इस समस्या पर कोई संज्ञान लिया है, और न ही यहां के विधायक या सांसद ने इस विषय को गंभीरता से उठाया है। कोई भी जनप्रतिनिधि यहां आकर स्थिति का जायजा नहीं ले रहा है और न ही कोई स्थायी समाधान सुझाया जा रहा है। जबकि महज कुछ प्रयासों से इस नदी में नहर का पानी छोड़ा जा सकता है जिससे सिंचाई और मत्स्य पालन दोनों की समस्याएं काफी हद तक दूर हो सकती हैं।
जनआंदोलन की जरूरत
स्थानीय लोगों में धीरे-धीरे आक्रोश पनप रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं ने नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जनआंदोलन की बात कही है। यदि समय रहते प्रशासन और सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो यह आंदोलन व्यापक रूप ले सकता है।
निष्कर्ष:
तरैया की ख़दरा नदी आज जलविहीन होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। यह केवल एक नदी का संकट नहीं है, बल्कि इससे जुड़े हजारों परिवारों की जीविका, संस्कृति और पर्यावरण की भी चिंता है। सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को अब जागना होगा और त्वरित कार्रवाई करनी होगी, ताकि एक सूखी नदी फिर से जीवनदायिनी बन सके।


