
मढ़ौरा (सारण)।
राजनीति में हार और जीत आम बात है, लेकिन कुछ लोग हार को मंजिल तक पहुंचने का जरिया बना लेते हैं। मढ़ौरा प्रखंड के जादो रहिमपुर निवासी लालू प्रसाद यादव उन्हीं में से एक हैं। पिछले 25 वर्षों से लगातार चुनावी मैदान में उतरने वाले लालू प्रसाद यादव आज भी उतने ही जोश में हैं जितने पहली बार नामांकन के वक्त थे।
अब एक बार फिर उन्होंने राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के प्रत्याशी के रूप में मढ़ौरा विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल किया है। उनका कहना है कि वे तब तक चुनाव लड़ते रहेंगे जब तक जनता उन्हें अपना जनप्रतिनिधि नहीं बना देती।

“जनता का आशीर्वाद ही मेरा सहारा है। जब तक मैं जनता की सेवा के लिए चुना नहीं जाता, तब तक मैदान नहीं छोड़ूंगा।” — लालू प्रसाद यादव
🏛️ पंचायत से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर
लालू प्रसाद यादव ने राजनीति की शुरुआत 2001 में वार्ड पार्षद चुनाव से की थी। इसके बाद उन्होंने मुखिया, सरपंच, एमएलसी, विधानसभा, लोकसभा और यहां तक कि राष्ट्रपति पद तक के लिए भी नामांकन दाखिल किया।
उन्होंने 2014, 2019 और 2024 में लोकसभा, जबकि 2015, 2020 और अब 2025 में विधानसभा चुनाव लड़ा है। यही नहीं, 2020 में एमएलसी और 2017 व 2022 में राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन दाखिल कर उन्होंने सबको चौंका दिया था।



😄 ‘नाम एक, चेहरा दूसरा’ — जब मतदाता हुए भ्रमित
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करीब 10,000 वोट मिले थे। उस वक्त कई मतदाता उन्हें राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव समझ बैठे थे।
लालू यादव मुस्कुराते हुए बताते हैं,
“राबड़ी देवी के विरोध में लोगों ने मुझे वोट दिया, यह सोचकर कि मैं वही लालू यादव हूं। लेकिन मैं तो सारण का आम आदमी हूं, जो सिर्फ जनता की सेवा के लिए राजनीति में आया है।”
2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें करीब 6,000 मत मिले। तब मतदाताओं ने उन्हें रोहिणी आचार्य के विरोध में एक विकल्प के रूप में देखा।
💪 हार के बाद भी हिम्मत बरकरार
लगातार हार के बावजूद लालू यादव की ऊर्जा और आत्मविश्वास देखने लायक है।
वे कहते हैं —
“राजनीति मेरे लिए सेवा का माध्यम है, पद का नहीं। जो हारकर भी हार न माने, वही असली योद्धा है। जीत मेरी मंज़िल है, लेकिन संघर्ष मेरा धर्म है।”
उनकी यही सोच उन्हें हर बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने की प्रेरणा देती है।

🌟 इस बार उम्मीद की नई किरण
मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने के बाद लालू यादव को इस बार जनता से अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है।
लगातार जनसंपर्क, संवाद और समाजसेवा के दम पर वे इस चुनाव को लेकर काफी आशान्वित हैं।
लालू प्रसाद यादव की यह कहानी भारतीय लोकतंत्र में एक मिसाल है —
जहां हार और निराशा के बीच भी कोई शख्स अपने सपनों और जनसेवा की भावना को जिंदा रखता है।
वे राजनीति को पेशा नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी मानते हैं। शायद यही वजह है कि वे जनता की नजरों में हारने वाले नहीं, बल्कि लड़ने वाले नेता बन गए हैं।