तरैया, सारण।
कथा सुनने के लिए मनुष्य को अपना पद प्रतिष्ठा घर पर ही छोड़ कर जाना चाहिए। क्योंकि पद प्रतिष्ठा साथ में लेकर जाने पर मन में अभिमान उत्पन्न होता है। जिस मन में अभिमान आ जाता है उस मन से भगवान निकल जाते हैं। इसलिए कहीं भी भगवान की कथा सुनने के लिए जाएं तो अपना पद प्रतिष्ठा घर पर छोड़कर जाएं। लेकर जाएं तो सिर्फ भक्ति भाव, तभी भगवान की कथा आप समझ पाएंगे। गंगा में डुबकी लगाने से अच्छा है रामकथा रूपी गंगा में डुबकी लगावें उक्त बातें मंगलवार को तरैया प्रखंड के भटगांई दक्षिण टोला अवस्थित हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा सह हनुमान जयंती यज्ञ में कथा वाचन के दौरान कथा वाचक मधुकर जी महाराज ने कही।
उन्होंने आगे कहा कि इतना ही नहीं कथा में डूबने का प्रयास करो तैरने का नहीं। कथा सुनो, चिंतन करो, लेकिन भगवान की कभी परीक्षा लेने का प्रयास नहीं करो, उनकी प्रतीक्षा करो। शबरी के प्रसंग का व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि शबरी कभी भगवान की परीक्षा लेने की नहीं सोची बल्कि उनकी प्रतीक्षा की और भगवान को एक दिन उसके दरवाजे पर जाना पड़ा। रामकथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने सीता हरण के बाद श्री राम जी द्वारा उनकी खोज की प्रसंग सुनाई। उन्होंने कहा कि सीता माता की खोज के समय की बात है।
भगवान शिव अपने पत्नी सती के साथ कुंभज ऋषि के पास कथा सुनने के लिए गए। महर्षि कुंभज के पास भगवान शिव सिर्फ शिव बन करके गए भगवान शिव बनकर नहीं। जबकि माता सती जगत जननी मां भवानी बनकर अर्थात अपने पूरे पद प्रतिष्ठा के साथ गई। भगवान शिव जो सिर्फ शिव बन करके गए थे वे भगवान राम की कथा अच्छी तरह से सुन पाए जबकि माता सती जो अपने पूरे पद प्रतिष्ठा के साथ गई थी वह भगवान राम की कथा नहीं समझ पाई। कथा सुनकर लौटने के दौरान माता सती, अपनी पत्नी की खोज में जंगल में भटक रहे भगवान राम की परीक्षा लेने की जिद की। इस दौरान उन्होंने माता सीता का स्वरूप धारण कर राम के आगे-आगे बन में चलने लगी। माता सती सीता के स्वरूप को धारण तो कर ली परंतु उनके स्वभाव को नहीं समझ पाई और राम के आगे आगे चलने लगी। जबकि कभी भी सीता माता श्री राम की आगे नहीं चली। हमेशा पीछे ही चलती थी। ऐसे में भगवान राम माता सती को पहचान गए और बोले कि जगत जननी मां आप अकेले जंगल में कहां घूम रही हैं। इस पर वे सरमा गई।
इस बात की जानकारी जब भोले शंकर को हुई तो वे मन ही मन मां सती को त्याग दिए। कारण कि उनकी पत्नी माता सीता का स्वरूप धारण कर ली थी। पत्नी मां बन गई थी। इस दौरान भगवान शंकर माता सती से नाराज हो गए और वे समाधि में लीन हो गए। उनकी समाधि 87000 वर्ष की थी। उन्होंने इस कथा के संदेश को बताते हुए कहा कि हमारे दैनिक जीवन में भी अगर पति पत्नी या परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ मनमुटाव या किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है तो ऐसे में एक व्यक्ति को मौन धारण कर लेना चाहिए। इससे विवाद बढ़ता नहीं है बल्कि समाप्त हो जाता है।
मौके पर मनोज सिंह, पंच सरपंच संघ के प्रदेश महासचिव सुनील कुमार तिवारी, मुखिया ओमप्रकाश राम, अमित कुमार सिंह, डॉ दिलीप सिंह, समिति प्रतिनिधि वीरेंद्र राम, कुमार संजीव रंजन, रामचंद्र तिवारी, विजय प्रताप सिंह, संजीव चौबे, चंदन ओझा, केदार सिंह, संत कुमार तिवारी, उमेश कुमार सिंह, अरुण सिंह, चंदेश्वर ठाकुर, अभिषेक कुमार, अवधेश सिंह, दीपक कुमार, दिलीप सिंह, गुड्डू सिंह, मुन्ना तिवारी, धूपन राय, शेखर सिंह, धर्मेंद्र सिंह, शंभू सिंह, सुनील सिंह, टुनटुन कुमार, अखिलेश कुमार, नीतू पांडे, हिमांशु राज मिश्रा, धनंजय उपाध्याय, भजन गायक शुभम प्रताप सिंह सहित हजारों की संख्या में महिलाएं व पुरुष उपस्थित थे।