
तरैया, सारण
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इस वर्ष दीपावली 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लासित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। दीपावली का त्यौहार पांच दिनों की अवधि में फैला हुआ है। जिसमे प्रत्येक दिन का अपना महत्व है और जिसमे परंपरागत अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। त्यौहार ‘धनतेरस’ के साथ आरम्भ होता है। यह वह शुभ दिन है जब लोग बर्तन, चांदी के बर्तन या सोना खरीदते हैं। यह माना जाता है कि इस दिन “धन” या कीमती वस्तु की खरीदारी शुभ है। इसके बाद छोटी दीपावाली (रूप चतुर्दशी) आती है जिसमें बड़ी दीपावली की तैयारी होती है। लोग अपने घरों को सजाने की शुरुआत करते हैं और एक दुसरे से मिलते-जुलते हैं। इसके अगले दिन दीपावली मनाई जाती है। इस दिन, लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, मिठाई और उपहार के साथ एक दूसरे के घर जाते हैं, पटाखे जलाते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। दीपावाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है और अंततः पांच दिवसीय उत्सव भाई दूज के साथ समाप्त होता है जहां बहने अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और भाई बहन एक-दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।

लक्ष्मी पूजन अधिकांश घरों में दीपावली के दिन लक्ष्मी जी -गणेश जी की पूजा की जाती है। हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है। दीपावली के दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं है परंतु उनकी पूजा के बिना हर पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की भी पूजा की जाती है। दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है। दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता की एक अनोखी छटा को पेश करता है। आचार्य सुकेश त्रिवेदी के अनुसार इस वर्ष 24 अक्टूबर सोमवार को दीपावली मनाई जाएगी।
श्री लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त:-
दोपहर 01:37 – 04:29 तक चर – लाभ
सायं 04:29 – 07:29 तक अमृत – चर, रात्रि 10:37 – 12:11 तक
दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त:-
प्रातःकाल मुहूर्त, 24 अक्टूबर, प्रातः 06:34:53 से 07:57:17 तक
प्रातःकाल मुहूर्त (चल, लाभ, अमृत):10:42:06 से 14:49:20 तक
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चल): शाम 04 :11:45 से 20:49:31 तक
रात्रि मुहूर्त (लाभ): 24:04:53 से 25:42:34 तक।
पांच दिवसीय अनुष्ठान इस प्रकार है-
दीपावली 24 अक्तूबर सोमवार, धनतेरस 22 अक्तूबर शनिवार, रूप चौदस 23 अक्तूबर रविवार,
गौधन पराई 26 अक्तूबर बुधवार, गोवर्धन (कुटाई ) पूजा, चित्रगुप्त पूजा, भैया दूज 27 अक्तूबर गुरुवार ।

28 अक्टूबर शुक्रवार नहाए खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत होगी। 29 अक्टूबर शनिवार को खरना मनाया जाएगा। 30 अक्टूबर रविवार को व्रती अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगी। 31 अक्टूबर सोमवार को उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा।