तरैया, सारण।
मान्यता के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस व्रत को जीउतिया और जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल जितिया व्रत की तिथि को लेकर काफी असमंज है। आइये आचार्य पनपुजन त्रिवेदी से जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण का समय।
जाने माने आचार्य मनपुजन त्रिवेदी ने बताया कि शनिवार 17 सितंबर को जितिया व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होगी। उसके बाद रविवार 18 सितंबर को निर्जला व्रत रखा जाएगा। आचार्य श्री त्रिवेदी के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जितिया व्रत रखी जाती है। इस बार अष्टमी तिथि 17 सितंबर को दोपहर दो बजकर 56 मिनट से लेकर अगले दिन 18 सितंबर रविवार को शाम चार बजकर 39 मिनट तक है। ऐसे में उदयातिथि 18 सितंबर रविवार को है। इसी कारण इस दिन ही व्रत रखा जाएगा। और 19 सितंबर को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाएगा। उन्होंने बताया कि गाय के दूध से पारण सर्वोत्तम होगा।
व्रत कैसे करें
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें। इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है।
जितिया व्रत कथा
इस व्रत का संबंध महाभारत काल से है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध के समय अश्वत्थामा अपने पिता की मौत से काफी विचलित हो गया था। उसके अंदर इतनी ज्यादा नफरत पैदा हो गयी थी की उसने अपने पिता के मौत की बदला लेने के लिए रात को सो रहे द्रौपदी के पांच बेटों को पांडव समझकर उनकी हत्या कर दी। उसका मन इतने से भी जब नहीं भरा तो उसने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे उसकी संतान को भी मार डाला। अश्वत्थामा के बढ़ते आतंक को देखकर अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया और श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ को फिर से जीवित कर दिया। बता दें कि, अभिमन्यु की पत्नी का नाम उत्तरा था और उसने जिस संतान को जन्म दिया उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। आगे जाकर जीवित्पुत्रिका ही राजा परीक्षित के नाम से मशहूर हुए। इसके बाद से ही महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत रखने लगीं। इस व्रत को मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश और बिहार में संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।