◆बाढ़ के समय से ही है विस्थापत, भीख मांगकर पाल-पट्टी में रहकर करती है गुजर बसर
तरैया, सारण।
कहने को सरकार की सारी योजनाएं समाज के उन सभी वर्गों तक पहुंच रही है जो दबे कुचले व आधारहीन है। लेकिन हकीकत इससे कुछ अलग ही है। तरैया में एक मामला सामने आया है जो मानवता को झकझोड़ दे रहा है। मध्य विद्यालय पचरौड़ के समीप सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे पाल-पट्टी गिरा कर एक बेबस महिला रहने को मजबूर है। महिला गांव में लोगों के घर-घर जाकर भीख मांग कर अपना गुजर बसर करती है। पीड़ित महिला गोपालगंज जिले के सरेया हनुमानगढ़ी गांव निवासी स्व. नारायण साह की 64 वर्षीय पत्नी प्रभावती कुंवर है।
महिला बताती है कि वर्ष 2020 में बाढ़ की विभीषिका झेल कर घर से विस्थापित होकर मसरख गंडक कालोनी में रह रही थी। जहां लगभग डेढ़ वर्षों तक वहां रही। उसके बाद वहां के कर्मियों ने बिल्डिंग तोड़ने का हवाला देते हुए उसे बाहर निकाल दिया और उसकी सारी सामान एक पिकअप वैन पर लोड कर भेज दिया। बेसहारा महिला तरैया के पचरौड़ पहुंची और विद्यालय के समीप खुले आसमान के नीचे पाल-पट्टी गिरा कर रहने को मजबूर हो गई। महिला बताती है कि शादी के लगभग 4 साल बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। उसकी कोई संतान नहीं है और अब वह बेसहारा होकर लोगों के आगे हाथ फैला कर जीवन जीने को मजबूर है। अब तक वह सभी सरकारी सहायता से वंचित रही है। यहां तक की महिला बताती है कि ना उसे राशन कार्ड है और ना ही उसे विधवा या वृद्धा पेंशन का लाभ मिल रहा है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस महंगाई के दौर में उस महिला के लिए अपना जीवन यापन करना कितनी कठिनाइयों का दौर होगा। महिला रोते बिलखते बताती है कि वह कुछ दिनों से बीमार पड़ी हुई है और खाना खाने और बनाने में दिक्कत के कारण वह कई दिनों से भूखी भी है। हालांकि आसपास के ग्रामीणों द्वारा उसे कभी कभी भोजन दे दिया जाता है। इस कड़ाके की धूप में प्लास्टिक के तिरपाल के नीचे जीवन से जूझ रही है। महिला की इस दशा को देख सरकार के उन सभी दावों का पोल खुलता दिख रहा है जिसमें सरकार की सभी योजना और लाभों को हर घर तक पहुंचाने की बात की जाती है।