
छपर: जहाँ एक ओर समाज आधुनिकता की दौड़ में भावनाओं से दूर होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सेवा कुटीर सारण ने एक ऐसा कार्य कर दिखाया है जो न केवल मानवीयता की मिसाल है, बल्कि पुनर्वास और सामाजिक पुनरावर्तन का एक सशक्त उदाहरण भी बन गया है।
पात्र – कमरे आलम उर्फ अक्षय, मूल निवासी हेरौता, शिवहर
करीब पांच वर्षों से अपने परिवार और सामाजिक जीवन से कट चुके कमरे आलम, जिन्हें सेवा कुटीर में अक्षय के नाम से जाना गया, आज फिर से अपने परिजनों से मिल चुके हैं। यह कहानी सिर्फ एक पुनर्मिलन की नहीं, बल्कि टूटे हुए मन को जोड़ने, खोई हुई पहचान को वापस दिलाने और जीवन को दोबारा संवारने की एक प्रेरणादायी गाथा है।
संघर्ष की शुरुआत: एक सिलाई कारीगर से भिक्षावृत्ति तक

अक्षय कभी दिल्ली में सिलाई का काम करते थे। वर्ष 2020 में जब देश में कोविड-19 महामारी ने दस्तक दी, तब लाखों लोगों की तरह अक्षय की भी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई। रोज़गार छिन गया, मानसिक तनाव बढ़ा, और धीरे-धीरे वे अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति में चले गए। मानसिक स्थिति बिगड़ने के चलते वे रास्ता भटकते-भटकते शिवहर से दूर छपरा आ पहुंचे।
सेवा कुटीर की नजर और पुनर्वास की शुरुआत:
14 अगस्त 2024 की सुबह जब छपरा बाइपास पर सेवा कुटीर सारण के क्षेत्र समन्वयक की नजर एक व्यक्ति पर पड़ी जो फटे पुराने कपड़ों में भिक्षावृत्ति कर रहा था, तो उन्होंने मानवीय संवेदना दिखाते हुए दो-तीन दिन तक उसका व्यवहारिक सर्वेक्षण किया। बातचीत में अक्षय की मानसिक स्थिति अत्यंत कमजोर पाई गई। सही जानकारी देने में असमर्थ होने के बावजूद, समन्वयक ने उनके भीतर छिपे आत्मसम्मान को पहचाना और उन्हें सेवा कुटीर लाने का निर्णय लिया।
सेवा कुटीर में जीवन की नई शुरुआत:
सेवा कुटीर के नियमों के अनुसार अक्षय को स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनाया गया, उचित भोजन और रहने की सुविधा दी गई। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था उनका मानसिक उपचार। संस्थान ने उन्हें निरंतर चिकित्सा सुविधा, परामर्श और दवा उपलब्ध कराकर डिप्रेशन की स्थिति से बाहर निकालने का भरपूर प्रयास किया। समय के साथ अक्षय का व्यवहार बदलने लगा, उनकी बोलचाल सामान्य हुई और वे धीरे-धीरे अपनी पहचान और अतीत को याद करने लगे।
सच्चाई सामने आई और परिवार से संपर्क:
लगातार संवाद और देखभाल के दौरान अक्षय ने अपने गांव, शिवहर जिले के हेरौता का पता बताया। सेवा कुटीर के क्षेत्र समन्वयक ने प्रशासनिक सहयोग से उस पते की पुष्टि की और अक्षय के परिजनों से संपर्क स्थापित किया। जैसे ही यह सूचना उनके घर तक पहुँची, वर्षों से दुखी परिजन भावुक हो उठे।
04 जून 2025: पुनर्मिलन का ऐतिहासिक दिन:
आज, 4 जून 2025 को, अक्षय के परिजन सेवा कुटीर छपरा पहुंचे। वर्षों बाद जब उन्होंने अक्षय को जीवित, स्वस्थ और सुरक्षित देखा, तो खुशी और भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। यह केवल एक परिवार का पुनर्मिलन नहीं था, यह एक समाज की जीत थी—उस समाज की जिसमें संवेदना अब भी जीवित है।
सेवा कुटीर सारण की भूमिका: सामाजिक पुनर्वास की मिसाल
सेवा कुटीर सारण की यह पहल न केवल एक व्यक्ति की जिंदगी बचाने की कहानी है, बल्कि यह बताती है कि यदि समाज का एक भी हिस्सा जागरूक और सक्रिय हो जाए, तो न जाने कितने अक्षय जैसे लोग फिर से अपनी दुनिया पा सकते हैं। क्षेत्र समन्वयक, केयर टेकर और पूरे सेवा कुटीर स्टाफ की संवेदनशीलता, मानवीयता और निरंतर प्रयास प्रशंसा के पात्र हैं।
आज के इस दौर में जब अधिकांश लोग ऐसे व्यक्तियों को नजरअंदाज कर देते हैं, सेवा कुटीर सारण की टीम ने यह दिखाया कि एक छोटी सी संवेदना भी किसी के जीवन की दिशा बदल सकती है। अक्षय अब अपने परिवार के साथ हैं, एक नई शुरुआत के लिए तैयार। और यह संभव हो सका सिर्फ और सिर्फ उस संस्था की बदौलत जिसने निस्वार्थ भाव से मानवता को अपनाया।