
तरैया, सारण
लोगों में होलिका दहन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। छह मार्च की रात पूर्णिमा तिथि के साथ भद्रा भी है। भद्रा में होलिका दहन वर्जित है। वहीं, सात मार्च को सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा तिथि खत्म हो रही है।
ऐसे में होलिका दहन कब किया जाय?
उसको लेकर तरह-तरह की कयासबाजी चल रही है।
धर्माचार्य लोगों की शंका का समाधान करते हुए तथा धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए छह मार्च को भद्रा के पुच्छ काल में होलिका दहन को उपयुक्त समय बता रहे हैं। आचार्य सुकेश त्रिवेदी के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि छह मार्च को दिन में 3.50 बजे लगकर सात मार्च को शाम 5.35 बजे तक रहेगी। सात मार्च को सूर्यास्त शाम 5.49 बजे होता है। बताते हैं कि धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु में वर्णित है कि होलिका दहन के समय पूर्णिमा तिथि का होना आवश्यक है। इसमें उदया तिथि का मान नहीं है।
होलिका दहन सूर्यास्त के बाद होता है, उस दौरान पूर्णिमा तिथि रहना आवश्यक है। वहीं, भद्रा छह मार्च को दिन में 5.56 से रात 4.48 बजे तक रहेगा। भद्रा में होलिका दहन वर्जित है। ऐसे में छह मार्च की रात 12.23 से 1.35 बजे के मध्य भद्रा का पुच्छ (समाप्ति की ओर बढ़ेगा) काल रहेगा।
आचार्य सुकेश त्रिवेदी ने बताया कि चतुर्दशी तिथि के बाद जब पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होती है तो हमारे यहां होलिका दहन किया जाता है। स्वाभाविक रूप से होलिका के दिन भद्रा रहता है। काशी बनारस से निकलने वाले विश्व पंचांग के अनुसार छह मार्च सोमवार को भद्रा दिन 3:50 से सुबह 4:43 प्रातः काल तक रहेगा।
विश्व पंचांग के अनुसार छह मार्च को मध्य रात्रि 12:18 से 1:30 बजे रात्रि तक होलिका दहन होगा।यह रात्रि जागरण का समय होता है। वहीं 8 मार्च दिन बुधवार को रंगों की होली खेली जाएगी। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे निश्चिंत होकर छह मार्च की रात्रि 12:18 बजे से 1:30 बजे के बीच होलिका दहन करें व आठ मार्च दिन बुधवार को होली मनाएं। होलिका दहन और होली के लिए यह शुभ मुहूर्त है।