◆ इस वर्ष 11 सितम्बर से प्रारम्भ हो रहा तर्पण एवं श्राद्ध
तरैया, सारण।
पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु तर्पण एवं श्राद्ध इस वर्ष 11 सितंबर से प्रारंभ होगा। सभी लोग अपने पूर्वजों को घर पर या गया धाम जाकर कर्मकाण्ड कर अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनके मोक्ष की कामना करेंगे। उक्त बातें आचार्य सुनील कुमार तिवारी ने बताते हुए कहा कि याज्ञवल्क्य स्मृति 1/270 में लिखा है कि आयु: प्रजा धनं विद्मां स्वर्गं मोक्ष सुखानी च प्रयच्छन्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामह:। अर्थात श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुए पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष तथा स्वर्ग आदि प्रदान करते हैं।
उन्होंने श्राद्ध और तर्पण का अर्थ बताते हुए कहा कि सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता-पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है। वेदों में श्राद्ध को पितृ यज्ञ कहा गया है। यह श्राद्ध- तर्पण हमारे पूर्वजों, माता, पिता और आचार्यों के प्रति सम्मान का भाव है। यह पितृ यज्ञ संपन्न होता है संतानोत्पत्ति और संतान की सही शिक्षा दीक्षा से। इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है।
वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं- 1. ब्रह्म यज्ञ, 2. देव यज्ञ, 3. पितृ यज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ। उक्त पांच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार दिया गया है। उक्त पांच यज्ञ में से ही एक यज्ञ है पितृ यज्ञ। इसे पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है। श्राद्ध कर्म का उचित समय बताते हुए कहा कि पितृयज्ञ या श्राद्ध कर्म के लिए आश्विन माह का कृष्ण पक्ष ही नियुक्त किया गया है। सूर्य के कन्या राशि में रहते समय आश्विन कृष्ण पक्ष पितर पक्ष कहलाता है। जो इस पक्ष तथा देह त्याग की तिथि पर अपने पितरों का श्राद्ध करता है उस श्राद्ध से पितर तृप्त हो जाते हैं। कन्या राशि में सूर्य रहने पर भी जब श्राद्ध नहीं होता तो पितर तुला राशि के सूर्य तक पूरे कार्तिक मास में श्राद्ध का इंतजार करते हैं और तब भी ना हो तो सूर्य देव के वृश्चिक राशि पर आने पर पितर निराश होकर अपने स्थान पर लौट जाते हैं।
तर्पण कर्म के प्रकार का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पुराणों में तर्पण को छह भागों में विभक्त किया गया है। 1. देव- तर्पण, 2. ऋषि- तर्पण, 3. दिव्य- मानव- तर्पण, 4. दिव्य-पितृ- तर्पण, 5. यम- तर्पण, 6. मनुष्य- पितृ- तर्पण।
श्राद्ध के नियम को संक्षिप्त में बताते हुए आचार्य श्री तिवारी ने कहा कि श्राद्ध पक्ष में व्यसन और मांसाहार पूरी तरह वर्जित माना गया है। पूर्णतः पवित्र रहकर ही श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। रात्रि में श्राद्ध नहीं किया जाता। श्राद्ध का समय दोपहर साढ़े बारह से एक बजे के बीच उपयुक्त माना गया है। कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी उनका अंश निकालते हैं क्योंकि ये सभी जीव यम के काफी नजदीकी हैं।
श्राद्ध कर्म के लाभ की चर्चा करते उन्होंने कहा कि
श्राद्ध से श्रेष्ठ संतान, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
वेदों के अनुसार इससे पितृ ऋण चुकता होता है। पुराणों के अनुसार श्रद्धा युक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु- पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं। संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।