
तरैया, सारण
14 जनवरी 2022 की रात्रि 8:49 बजे से सूर्य मकर राशि में चले जाएंगे। इसलिए 15 जनवरी शनिवार को खिचड़ी (मकर संक्रांति) मनायी जाएगी। उक्त जानकारी देते हुए आचार्य सुकेश त्रिवेदी ने बताया कि सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति में प्रातः सूर्योदय के बाद पुण्यकाल में पवित्र स्थानों पर स्नान दान का महत्व होता है। इस साल 2022 में मकर संक्रांति की तारीख को लेकर स्पष्टता नहीं हो रही है। कुछ लोग 14 जनवरी को तो कुछ लोग 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व बता रहे हैं। मकर संक्रांति का अर्थ सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की घटना से है। लेकिन मकर संक्रांति के स्नान एवं दान का संबंध तिथि से हो जाता है। आप भी इस साल मकर संक्रांति की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं, तो परेशान न हो। आचार्य सुकेश त्रिवेदी के अनुसार इस वर्ष मकर संक्रांति (खिचड़ी) 15 जनवरी को ही शास्त्र सम्मत है।
पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी, शुक्रवार 14 जनवरी-2022 की रात 08 बजकर 49 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। अतः मकर-संक्रांति (खिचड़ी) का पुण्य काल दूसरे दिन 15 जनवरी दिन शनिवार को दिन में 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। ऐसे में स्नान-ध्यान, दान-पुण्य 15 जनवरी दिन शनिवार को सर्वमान्य होगा।
हर बार इस त्यौहार को लेकर असमंजस की स्थिति रहती है कि 14 को या 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाय। इसे लेकर विद्वानों का अलग अलग मत है। किंतु सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करने के समय को देखकर इसका निर्णय लिया जाता है, जिसके हिसाब से ही मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति का समय युगों से बदलता रहा है।
ज्योतिषीय गणना और घटनाओं को जोड़ने से मालूम होता है कि महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मनाई गई थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर सक्रांति मनाई गई थी।
ज्योतिषाचार्य के हिसाब से मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक वर्ष मे 20 सेकंड बढ़ जाती है। इस हिसाब से पांच हजार वर्ष बाद संभव है कि मकर सक्रांति जनवरी में नहीं फरवरी में मनाई जाएगीl
15 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्यकाल रहेगा। साथ ही इस दिन पौष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि भी रहेगी। जिसके चलते इस दिन शनि प्रदोष का पर्व भी मनाया जाएगा। मकर संक्रांति और शनि प्रदोष के चलते इस तिथि का महत्व और भी बढ़ जाएगा। इस दिन सूर्यदेव के साथ-साथ शनिदेव की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होगी। ऐसा शुभ योग बहुत ही कम बार बनता है जब पिता और पुत्र (सूर्य-शनि) की पूजा की संयोग एक साथ बनता है।